नई दिल्ली, 1 अगस्त (आईएएनएस)। सिद्ध चिकित्सा एक लोकप्रिय प्राचीन चिकित्सा पद्धति है, जो न केवल प्रभावी और सहज शैली के कारण रोगों के उपचार में सहायक है, बल्कि शरीर, मन और आत्मा के समग्र संतुलन को भी बढ़ावा देती है। यह प्रणाली त्रिदोशा (वात, पिट्टा, कपा) को संतुलित करने, पाचन तंत्र को मजबूत करने और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करने में प्रभावी है।
सिद्ध प्रणाली भारत में तमिलनाडु में उत्पन्न होने वाली सबसे पुरानी चिकित्सा प्रथाओं में से एक है। आयुष मंत्रालय के अनुसार, यह प्रणाली त्रिदोशा (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने में प्रभावी है, जो पाचन तंत्र को मजबूत करती है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करती है। ‘सिद्ध’ शब्द तमिल भाषा के ‘सिद्धि’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है पूर्णता या उपलब्धि। यह चिकित्सा प्रणाली हर्बल उपचार, डिटॉक्स रूटीन, सचेत आहार और जीवन शैली प्रथाओं के माध्यम से आंतरिक संतुलन पर जोर देती है।
सिद्ध चिकित्सा की उत्पत्ति को अठारह सिद्धों को श्रेय दिया जाता है, जिसमें अगस्तस्त को इसका संस्थापक माना जाता है। परंपरा के अनुसार, भगवान शिव ने इस ज्ञान को पार्वती, फिर नंददेवर और अंत में सिद्धों में लाया। इस ज्ञान को पहले मौखिक रूप से और बाद में ताड़ के पत्तों पर लिखी गई पांडुलिपियों के माध्यम से संरक्षित किया गया था। सिद्ध मेडिकल रोगी की उम्र, आदतों, पर्यावरण और शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत उपचार प्रदान करता है।
यह प्रणाली तमिल -स्पेकिंग क्षेत्रों में प्रचलित है, विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल और श्रीलंका में।
यह प्रणाली संतुलित ट्रिडोश में भी मदद करती है, जो आयुर्वेद के अनुसार सभी बीमारियों का मूल कारण है। यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है, सूजन, अल्सर, अपच और भूख के नुकसान जैसी समस्याओं से राहत देता है। कयाकपम (जीवनशैली और चिकित्सा का संयोजन) और मुप्पू (सार्वभौमिक नमक) इसकी विशेषता है, जो शरीर के लिए निष्क्रिय अंगों और डिटॉक्स के पुनर्जनन में सहायक है। यह कोविड -19 जैसी बीमारियों के लक्षणों में सुधार के लिए भी प्रभावी साबित हुआ है।
सिद्ध दवा में हर्बल दवाएं, योग, प्राणायाम, ध्यान और आहार परिवर्तन शामिल हैं। उपचार शुरू करने से पहले, रोगी की शारीरिक स्थिति, दोषों और जीवन शैली के असंतुलन का विश्लेषण किया जाता है। विशेष जड़ी -बूटियों और खनिजों का उपयोग ‘कयाकरपम’ के तहत किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद आवश्यक है। डिटॉक्स के लिए पंचकर्मा और विशेष आहार योजनाओं जैसी प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है।
सिद्ध प्रणाली न केवल बीमारियों का इलाज करती है, बल्कि एक स्वस्थ जीवन शैली को अपनाने का तरीका भी दिखाती है। भारत सरकार ने सिद्ध दवा को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु और केरल में स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की है। यह प्रणाली आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह प्राकृतिक और समग्र उपचार पर जोर देती है।
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